Monday 11 February 2019

मेरा फटा जूता

जूता
(मासूम की आवाज़)

पिता जी ने कुछ बरस पेहले एक जोङी, रंग बिरंगा सुंदर सा नया जूता लाकर दिया था | आज भी याद है जब वो बंद डिब्बे में उन्हें लेकर आये थे तब मैं उन्हें देखते ही पूरे आँगन में नाचने लगा था , अल्हड़पन का दौर जो था | घर में एक अलग सी चेहल पेहेल मची रेहती थी, धीरे धीरे मैं जवानी के उस मोड़ पर जा पाहुंचा, जहाँ अब हालातों को देख मन मार लिया करता था | पर घर के उन डगमगाते हालातों में भी वो जूते हर दुख-सुख में मेरा साथ देते थे , आखिर देंगे ही एक वही जोड़ी जूता जो बचा था | केहने का तो बहुत मन करता , पर घर के हालात अभी कुछ नाज़ुक थे | केहता भी तो कैसे ? जेबें अभी खाली जो पड़ी थीं | समय बदलेगा यही सोच कर खुश हो लेता था | हर दिन वही जूता पेहेन कर कालेज जाया करता , हालंकी किनारों से थोड़ा फट सा गया था | बेशरम इतने हैं ये जूते कि बारिश में भी टिके रेहते हैं | कुछ लोग तो अब हसने लगे हैं | जब भी मेरे जूतो की तरफ़ देखते हैं “चमकदार जूते वाला” केह कर चिढाते हैं , जबकि मुझे पता है वो जूतों की हालत पर हंसते हैं | पर अफ़सोस नही होता मुझे उन्हें देख कर अखिर कार पिता जी इतने मन से जो लेकर अये थे | और हालात जो भी हो यही तो हैं जो इस ज़िंदगी की टूटी राहों पर मेरा साथ देते हैं …यही मेरे अपने फटे जूते |

– वैभवी तिवारी

No comments:

Post a Comment

लोग क्या कहेंगे?

जो तूने कदम घर से निकाला तो लोग क्या कहेंगे, जीन्स पहेन जो कॉलेज गयी तो लोग क्या कहेंगे, दोस्ती किसी लड़के से की तो लोग क्या कहेंगे, ...