औरत
कहीं दूर कोई चलती जा रही थी…
उसे देख मन में प्रेरना उभरती जा रही थी…
ना जाने किस तलाश में चलती जा रही थी…
बस पीछे अपनी छाप छोडती जा रही थी…
मन में उत्साह ओर कदमों में चाह थी उसके…
हर दोराहे पे गीत गुन-गुनाती जा रही थी…
दिल में शायद कोई गम था उसके…
ना जतलाते किसी को…
बस बढती जा रही थी…
तनहा राहों को चुनकर…
कांटो में कदम रखकर…
गम से भाग या खुशी धूंधती…
बस पाथ पर चलती जा रही थी…
ज़माने ने नोचा, लोगों ने खींचा…
हर निशान को छुपाती , बस चलती जा रही थी…
सादे पन्नों पे, अपनी किस्मत लिखने चली थी…
दुनिया ने उसकी लकीरों में हैवानियत लिख दी थी…
तनों को सुनती…
बस चलती जा रही थी…
इतनी आहिंसा के बाद भी…
मुस्कुराती जा रही थी…
लोगों ने कहा "वो औरत" है…
दरिन्दगी को झेलती…
जीना सिखलाति जा रही थी…
बस चलती जा रही थी|
वैभवी तिवारी
कहीं दूर कोई चलती जा रही थी…
उसे देख मन में प्रेरना उभरती जा रही थी…
ना जाने किस तलाश में चलती जा रही थी…
बस पीछे अपनी छाप छोडती जा रही थी…
मन में उत्साह ओर कदमों में चाह थी उसके…
हर दोराहे पे गीत गुन-गुनाती जा रही थी…
दिल में शायद कोई गम था उसके…
ना जतलाते किसी को…
बस बढती जा रही थी…
तनहा राहों को चुनकर…
कांटो में कदम रखकर…
गम से भाग या खुशी धूंधती…
बस पाथ पर चलती जा रही थी…
ज़माने ने नोचा, लोगों ने खींचा…
हर निशान को छुपाती , बस चलती जा रही थी…
सादे पन्नों पे, अपनी किस्मत लिखने चली थी…
दुनिया ने उसकी लकीरों में हैवानियत लिख दी थी…
तनों को सुनती…
बस चलती जा रही थी…
इतनी आहिंसा के बाद भी…
मुस्कुराती जा रही थी…
लोगों ने कहा "वो औरत" है…
दरिन्दगी को झेलती…
जीना सिखलाति जा रही थी…
बस चलती जा रही थी|
वैभवी तिवारी
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