Wednesday 25 May 2016

आखरी अलविदा

आखरी अलविदा
जिस खुशी से चला था आज उस ओर,
कि फ़िर कुछ सीख कर वापस आऊँगा|
अम्मी को सलाम अब्बू को आदब कर निकला
इस बात से अनजान की आखरी
अलविदा भी ना कह पाऊँगा
मदरसा समझ कर गया था
चंद पलों में कब्रिस्तान बन गया
सब कुछ एक पल में डेह गया |
आज यारों ने मस्ती का माहौल बनाया था
एक दूसरे की टाँग खीच, खूब चिढाया था |
हर चेहरे पर एक मुस्कान छाई थी,
कुछ कर जाने की उमीद, आंखों में आयी थी |
तभी एक झौंका आया खौफनाक मौत का पैगाम लाया |
एक नहीं दो नहीं, कई हैवान साथ लाया |
ना लड़कों को ना लड़कीयों को
ना छोङा बङे  - बड़ों को ।
जला कर खाक कर दिया, खुदा के नेक बंदों को
किसी को काटा, किसी को जलाया
किसी को हैवानियत से फूँक डाला |
जिन आंखों में खुशी चमक रही थी
अब उनमें मौत का डर दिख रहा था |
दिल दहल सा गया था यह देख कर,
कि वे खिलौना समझ कर,हम पर गोलियाँ बरसा रहे थे |
ना खुदा का दर था, ना इंसानियत की चन्द बूंदें बची थीं ,
था तो बस, जिहाद के नाम पर बदला |
अभी तो अम्मी की गोद से बाहर अये थे,
अभी सही से खडा होना भी ना सीखा था
कि उन जानवरों ने फ़िर से सुला दिया
एक दर्दनाक मौत का एहसास करा दिया |
उन ना-पाक दरिनदों को शर्म से एक आँसू भी ना आया था |
एक-एक कर सबको मौत के घाट उतार दिया,
बच्चों को जिन्दगी की भीख माँगनें पर मजबूर कर दिया।
मेंरी आँखें उनकी नज़रों से छुप रहीं थी,
पर अंजान था मैं इस बात से कि,
जिस पल मुड़ा तो वह सीन चीर देने वाली गोली,
मुझे भी अपना निशाना बना लेगी |
मेरी चीख भी ना पहुँच पायी ,मेरी अम्मी के कानों तक |
चूर-चूर हो गये सारे  सपने! सारी उम्मीदें
ए-मेरे -खुदा ना दिखना ये मनज़र कभी किसी को,
ये गुज़ारिश कर मैं चला,
जमानें से आखरी अलविदा कर चला ||
By- वैभवी तिवरी

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