मन की बात
मेरे हालातों की नुमाइशके लुटेरे यहाँ हज़ार बैठे हैं
मदद-ए-हाथ को पीछे कीचने वाले
यहाँ हज़ार बैठे हैं...
गमों के बोझ तले काँधे अब
झुक से गये हैं
मेरे अश्कों पे हसने वाले
यहाँ हज़ार बैठे हैं...
कतरा कतरा खुशी को ढूँढती
जिस भी नज़र से मिली
निगाहों के दरवाज़े बंद कर
दुतकारने वाले यहाँ
हज़ार बैठे हैं...
रुक्सत हो जाऊंगी एक दिन
ऊमीदों के बादल के साथ
यहाँ ना सही!
आसमानों में मेरे कदरदान
हज़ारों बैठे हैं |
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ReplyDeleteGreat Work Vaibhavi... The way you think, makes your poem so different...
ReplyDeletethankyou so much
Deletenice one
ReplyDeleteThankyou
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